जल ही जीवन है
गिलास भर पानी से ही नहाना होगा!
आपके पास एक गिलास पानी हो तो आप क्या करेंगे? नहाएंगे या पीएंगे? आपको एक विकल्प चुनना
पड़ेगा। यह कल्पना नहीं, भविष्य का कड़वा सच है। अब पानी का महासंकट है। यदि हम इसे नहीं
समझे तो पंद्रह सालों में आज के मुकाबले पानी आधा ही मिलेगा और 40 साल बाद तो स्थिति और
भी विकट होगी।
भारत में 15 फीसदी भूजल स्रोत सूखने की स्थिति में हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा करीब 20 लाख
ट्यूबवेल भारत में ही हैं जो लगातार जमीन का सीना फाड़कर पानी खींच रहे हैं। ऐसे में वर्ल्ड बैंक के
इस आकलन पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगले 25 सालों में भूजल के 60 फीसदी स्रोत
खतरनाक स्थिति में पहुंच जाएंगे।
यह स्थिति भारत के लिए इसलिए भी दयनीय होगी, क्योंकि हमारी 70 फीसदी मांग भूजल के स्रोतों
से ही पूरी होती है। तब न फसल उगाने के लिए पानी होगा, न कल-कारखानों में सामान बनाने के
लिए। कृषि और उद्योग धंधे तो बर्बाद होंगे ही, हमारी एक बड़ी आबादी पानी की एक-एक बूंद के लिए
तरस जाएगी।
यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह संकट क्यों आया? जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह कहते हैं कि
कुछ साल पहले किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे भूमिगत जल भंडार कभी खाली भी हो
सकते हैं। कुछ फीट की खुदाई करो, जल हाजिर। लेकिन कुछ ही वर्षो मंे हमने इतनी बेरहमी से
इनका दोहन किया कि आज ये बड़ी तेजी से खाली हो रहे हैं।
इसलिए आने वाले कुछ सालों में ये पूरी तरह से खत्म हो जाएं तो इसमें कोई अचरज नहीं होना
चाहिए। इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की रिपोर्ट कहती है कि 2002
से 2008 के दौरान ही देश के भूमिगत जल भंडारों से 109 अरब क्यूबिक मीटर (एक क्यूबिक मीटर
= एक हजार लीटर) पानी समाप्त हो चुका है। बीते तीन सालों में स्थिति और भी बदतर हुई है।
नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एक बहुत ही दिलचस्प अध्ययन किया है। यह अध्ययन बताता
है कि भारत की आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ने के साथ ही देश में जल संकट और भी गहरा जाएगा।
भारत में जीडीपी बढ़ रही है और इससे लोगों की आय में भी इजाफा हो रहा है। आय बढ़ने से
लाइफस्टाइल तेजी से बदल रही है।
आधुनिक लाइफस्टाइल की वजह से पानी की खपत में बढ़ोतरी होती है। अभी भारत में प्रति व्यक्ति
प्रतिदिन पानी की मांग 85 लीटर है जो 2025 तक 125 लीटर हो जाएगी। उस समय तक भारत की
आबादी भी बढ़कर एक अरब 38 करोड़ हो जाएगी। इससे प्रतिदिन पानी की मांग में कुल 7900 करोड़
लीटर की बढ़ोतरी हो जाएगी।
इसका सीधा असर जल संसाधनों पर पड़ेगा। इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए हमें भूजल के
स्रोतों की ओर ताकना पड़ेगा जो इन पंद्रह सालों में पहले ही काफी खत्म हो चुके होंगे। यानी लोगों की
पानी की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन हमारी सरकारें उतना पानी उपलब्ध करवाने की स्थिति में नहीं होंगी।
आज प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 3076 लीटर है जो तब घटकर आधे से भी कम रह जाएगी।
पानी को तरसेंगे 180 करोड़
वर्ष 2025 तक दुनिया की आबादी 8 अरब और 2050 तक 9 अरब को पार कर जाएगी। यूएन वाटर
कहता है कि अगले पंद्रह सालों में दुनिया के 180 करोड़ लोग ऐसे देशों में रह रहे होंगे जहां पानी
लगभग पूरी तरह से खत्म हो चुका होगा। इन देशों में घाना, केन्या, नामीबिया सहित बड़ी संख्या
अफ्रीकी व एशियाई देशों की होगी।
अभी छह में से एक व्यक्ति पानी के लिए जूझ रहा है। उस समय दो तिहाई यानी करीब साढ़े पांच
अरब लोग भीषण जल संकट से जूझ रहे होंगे। शहरीकरण से समस्या और भी जटिल हो जाएगी। वर्ल्ड
बैंक के अनुसार वर्ष 2020 तक दुनिया की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी।
नई शहरी जनसंख्या तक पानी पहुंचाना एक कठिन चुनौती होगी। हर दिन एक लाख लोग मध्यम वर्ग
में जुड़ जाते हैं। पानी को लेकर मध्यम वर्ग की खर्चीली आदतों से भी पानी का संकट और गहराएगा।
ग्लोबल वार्मिग और जल संकट
बारिश की मात्रा के साथ-साथ वष्र के दिनों में भी लगातार कमी आएगी। इससे बारिश से मिलने वाला
पानी कम होगा और अंतत: जल उपलब्धता में गिरावट आएगी। इससे वर्षा चक्र में व्यवधान आएगा।
गर्मी में इजाफा होगा जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आएगी। अभी कुल पानी का लगभग 2.5
फीसदी वाष्पीकरण की भेंट चढ़ जाता है। इंटरनेशनल हाइड्रोलॉजिकल प्रोग्राम का अनुमान है कि ग्लोबल
वार्मिग की वजह से अगले 15 सालों में वाष्पीकरण की गति आज की तुलना में दुगुनी हो जाएगी।
वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आने से भी नदियों और अन्य जल स्रोतों में पानी की मात्रा कम होती
जाएगी। गर्मी बढ़ने से ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघलेगी। नुकसान यह होगा कि यह मीठा पानी समुद्र के
खारे पानी में मिल जाएगा। इस तरह मीठे पानी के पहले से ही सीमित स्रोत और भी संकुचित हो
जाएंगे।
कहा जा सकता है कि आने वाला वक्त भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों के लिए बेहद कठिन है।
बढ़ती आबादी, भूजल का अत्यधिक दोहन, ग्लोबल वार्मिग इत्यादि वजहों से पानी ऐसी ‘लक्जरियस’
चीज बन जाएगी, जिसका इस्तेमाल उसी तरह करना होगा, जैसे आज हम घी का करते हैं।
संकट बनता महासंकट
संयुक्तराष्ट्र के जल उपलब्धता मानकों के अनुसार प्रत्येक व्यक्तिको प्रतिदिन न्यूनतम 50 लीटर पानी
मिलना चाहिए, लेकिन स्थिति इससे बदतर है। दुनिया के छह में से एक व्यक्तिको इतना पानी नहीं
मिल पाता है। यानी 89.4 करोड़ लोगों को बेहद कम पानी में अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति
करनी पड़ती है।
भारतीय पैमानों पर देखें तो एक व्यक्तिको रोजाना कम से कम 85 लीटर पानी मुहैया होना चाहिए,
लेकिन हमारे देश में भी ३क् फीसदी लोगों की यह जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। इनमें से अधिकांश
लोग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, लेकिन शहरों में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
सब-सहारा अफ्रीकी देशों जैसे कांगो, नाम्बिया, मोजांबिक, घाना इत्यादि के दूरस्थ गांवों में तो लोगों
को महीने में औसतन १क्क् लीटर पानी मुश्किल से मिल पाता है। इन देशों में पानी पर खर्च सकल
घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांच फीसदी से भी ज्यादा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले सालों
में इस खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी होगी।
गिलास भर पानी से ही नहाना होगा!
आपके पास एक गिलास पानी हो तो आप क्या करेंगे? नहाएंगे या पीएंगे? आपको एक विकल्प चुनना
पड़ेगा। यह कल्पना नहीं, भविष्य का कड़वा सच है। अब पानी का महासंकट है। यदि हम इसे नहीं
समझे तो पंद्रह सालों में आज के मुकाबले पानी आधा ही मिलेगा और 40 साल बाद तो स्थिति और
भी विकट होगी।
भारत में 15 फीसदी भूजल स्रोत सूखने की स्थिति में हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा करीब 20 लाख
ट्यूबवेल भारत में ही हैं जो लगातार जमीन का सीना फाड़कर पानी खींच रहे हैं। ऐसे में वर्ल्ड बैंक के
इस आकलन पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगले 25 सालों में भूजल के 60 फीसदी स्रोत
खतरनाक स्थिति में पहुंच जाएंगे।
यह स्थिति भारत के लिए इसलिए भी दयनीय होगी, क्योंकि हमारी 70 फीसदी मांग भूजल के स्रोतों
से ही पूरी होती है। तब न फसल उगाने के लिए पानी होगा, न कल-कारखानों में सामान बनाने के
लिए। कृषि और उद्योग धंधे तो बर्बाद होंगे ही, हमारी एक बड़ी आबादी पानी की एक-एक बूंद के लिए
तरस जाएगी।
यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह संकट क्यों आया? जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह कहते हैं कि
कुछ साल पहले किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि हमारे भूमिगत जल भंडार कभी खाली भी हो
सकते हैं। कुछ फीट की खुदाई करो, जल हाजिर। लेकिन कुछ ही वर्षो मंे हमने इतनी बेरहमी से
इनका दोहन किया कि आज ये बड़ी तेजी से खाली हो रहे हैं।
इसलिए आने वाले कुछ सालों में ये पूरी तरह से खत्म हो जाएं तो इसमें कोई अचरज नहीं होना
चाहिए। इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की रिपोर्ट कहती है कि 2002
से 2008 के दौरान ही देश के भूमिगत जल भंडारों से 109 अरब क्यूबिक मीटर (एक क्यूबिक मीटर
= एक हजार लीटर) पानी समाप्त हो चुका है। बीते तीन सालों में स्थिति और भी बदतर हुई है।
नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एक बहुत ही दिलचस्प अध्ययन किया है। यह अध्ययन बताता
है कि भारत की आर्थिक विकास की रफ्तार बढ़ने के साथ ही देश में जल संकट और भी गहरा जाएगा।
भारत में जीडीपी बढ़ रही है और इससे लोगों की आय में भी इजाफा हो रहा है। आय बढ़ने से
लाइफस्टाइल तेजी से बदल रही है।
आधुनिक लाइफस्टाइल की वजह से पानी की खपत में बढ़ोतरी होती है। अभी भारत में प्रति व्यक्ति
प्रतिदिन पानी की मांग 85 लीटर है जो 2025 तक 125 लीटर हो जाएगी। उस समय तक भारत की
आबादी भी बढ़कर एक अरब 38 करोड़ हो जाएगी। इससे प्रतिदिन पानी की मांग में कुल 7900 करोड़
लीटर की बढ़ोतरी हो जाएगी।
इसका सीधा असर जल संसाधनों पर पड़ेगा। इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए हमें भूजल के
स्रोतों की ओर ताकना पड़ेगा जो इन पंद्रह सालों में पहले ही काफी खत्म हो चुके होंगे। यानी लोगों की
पानी की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन हमारी सरकारें उतना पानी उपलब्ध करवाने की स्थिति में नहीं होंगी।
आज प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 3076 लीटर है जो तब घटकर आधे से भी कम रह जाएगी।
पानी को तरसेंगे 180 करोड़
वर्ष 2025 तक दुनिया की आबादी 8 अरब और 2050 तक 9 अरब को पार कर जाएगी। यूएन वाटर
कहता है कि अगले पंद्रह सालों में दुनिया के 180 करोड़ लोग ऐसे देशों में रह रहे होंगे जहां पानी
लगभग पूरी तरह से खत्म हो चुका होगा। इन देशों में घाना, केन्या, नामीबिया सहित बड़ी संख्या
अफ्रीकी व एशियाई देशों की होगी।
अभी छह में से एक व्यक्ति पानी के लिए जूझ रहा है। उस समय दो तिहाई यानी करीब साढ़े पांच
अरब लोग भीषण जल संकट से जूझ रहे होंगे। शहरीकरण से समस्या और भी जटिल हो जाएगी। वर्ल्ड
बैंक के अनुसार वर्ष 2020 तक दुनिया की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी।
नई शहरी जनसंख्या तक पानी पहुंचाना एक कठिन चुनौती होगी। हर दिन एक लाख लोग मध्यम वर्ग
में जुड़ जाते हैं। पानी को लेकर मध्यम वर्ग की खर्चीली आदतों से भी पानी का संकट और गहराएगा।
ग्लोबल वार्मिग और जल संकट
बारिश की मात्रा के साथ-साथ वष्र के दिनों में भी लगातार कमी आएगी। इससे बारिश से मिलने वाला
पानी कम होगा और अंतत: जल उपलब्धता में गिरावट आएगी। इससे वर्षा चक्र में व्यवधान आएगा।
गर्मी में इजाफा होगा जिससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आएगी। अभी कुल पानी का लगभग 2.5
फीसदी वाष्पीकरण की भेंट चढ़ जाता है। इंटरनेशनल हाइड्रोलॉजिकल प्रोग्राम का अनुमान है कि ग्लोबल
वार्मिग की वजह से अगले 15 सालों में वाष्पीकरण की गति आज की तुलना में दुगुनी हो जाएगी।
वाष्पीकरण की प्रक्रिया में तेजी आने से भी नदियों और अन्य जल स्रोतों में पानी की मात्रा कम होती
जाएगी। गर्मी बढ़ने से ध्रुवों की बर्फ तेजी से पिघलेगी। नुकसान यह होगा कि यह मीठा पानी समुद्र के
खारे पानी में मिल जाएगा। इस तरह मीठे पानी के पहले से ही सीमित स्रोत और भी संकुचित हो
जाएंगे।
कहा जा सकता है कि आने वाला वक्त भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों के लिए बेहद कठिन है।
बढ़ती आबादी, भूजल का अत्यधिक दोहन, ग्लोबल वार्मिग इत्यादि वजहों से पानी ऐसी ‘लक्जरियस’
चीज बन जाएगी, जिसका इस्तेमाल उसी तरह करना होगा, जैसे आज हम घी का करते हैं।
संकट बनता महासंकट
संयुक्तराष्ट्र के जल उपलब्धता मानकों के अनुसार प्रत्येक व्यक्तिको प्रतिदिन न्यूनतम 50 लीटर पानी
मिलना चाहिए, लेकिन स्थिति इससे बदतर है। दुनिया के छह में से एक व्यक्तिको इतना पानी नहीं
मिल पाता है। यानी 89.4 करोड़ लोगों को बेहद कम पानी में अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति
करनी पड़ती है।
भारतीय पैमानों पर देखें तो एक व्यक्तिको रोजाना कम से कम 85 लीटर पानी मुहैया होना चाहिए,
लेकिन हमारे देश में भी ३क् फीसदी लोगों की यह जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। इनमें से अधिकांश
लोग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, लेकिन शहरों में भी हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
सब-सहारा अफ्रीकी देशों जैसे कांगो, नाम्बिया, मोजांबिक, घाना इत्यादि के दूरस्थ गांवों में तो लोगों
को महीने में औसतन १क्क् लीटर पानी मुश्किल से मिल पाता है। इन देशों में पानी पर खर्च सकल
घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पांच फीसदी से भी ज्यादा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले सालों
में इस खर्च में भारी बढ़ोतरी करनी होगी।